योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 364
From जैनकोष
छेदोपस्थापक मुनिराज का स्वरूप -
निष्प्रमादतया पाल्या योगिना हितमिच्छता ।
सप्रमाद: पुनस्तेषु छेदोपस्थापको यति: ।।३६४।।
अन्वय :- हितं इच्छता योगिना निष्प्रमादतया (मूलगुणा:) पाल्या: । पुन: तेषु सप्रमाद: यति: छेदोपस्थापक: (भवति) ।
सरलार्थ :- जो योगी अपना हित चाहते हैं, उनको इन २८ मूलगुणों का प्रमादरहित होकर पालन करना चाहिए । जो इन मूलगुणों के पालन में प्रमादरूप प्रवर्तते हैं, वे योगी छेदोपस्थापक होते हैं । (मूल श्लोक में एकवचन का प्रयोग होने पर भी सरलार्थ में बहुान के लिए बहुवचन का प्रयोग किया है )