योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 382
From जैनकोष
आराधना तथा विराधना का फल -
आराधने यथा तस्य फलमुक्तमनुत्तरम् ।
मलिनीकरणे तस्य तथानर्थो बहुव्यथ: ।।३८२।।
अन्वय :- यथा तस्य (निर्वृते: उपायस्य) आराधने अनुत्तरम् फलं उक्तं तथा तस्य (निर्वृते: उपायस्य) मलिनीकरणे अनर्थ: तथा बहुव्यथ: (उक्त:)।
सरलार्थ :- मोक्षमार्ग की आराधना के फलरूप में अनुपम मुक्ति की प्राप्ति होती है और जो जीव मोक्षमार्ग की विराधना करता है, उसको निगोदादि अवस्थारूप अनर्थ अवस्था की प्राप्तिपूर्वक महादु:खरूप फल मिलता है ।