योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 444
From जैनकोष
साधक अनेक, पर साधन एक ही -
एक एव सदा तेषां पन्था: सम्यक्त्वचारिणाम् ।
व्यक्तीनामिव सामान्यं दशाभेदेsपि जायते ।।४४४।।
अन्वय :- (यथा) व्यक्तीनां दशाभेदे अपि सामान्यं इव सम्यक्त्वचारिणां तेषां पन्था: सदा एक एव जायते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार अनेक व्यक्तियों में विशेष अवस्थाओं की अपेक्षा अनेक भेद होने पर भी मनुष्यत्व अथवा जीवत्व की अपेक्षा एकपना ही है । उसीप्रकार मोक्षमार्गी सम्यक्त्व तथा चारित्रवान अनेक जीवों में गति, शरीर, ज्ञान आदि की अपेक्षा से कुछ भेद होने पर भी वीतरागमय मोक्षमार्ग की अपेक्षा कुछ भेद/अंतर नहीं है । उन सबमें वीतरागमय मोक्षमार्गरूप धर्म एक ही है ।