योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 453
From जैनकोष
मोक्ष एवं संसार के लिये अनुकूल चारित्र -
निर्वृतेरनुकूलोsध्वा चारित्रं जिन-भाषितम् ।
संसृतेरनुकूलोsध्वा चारित्रं पर-भाषितम् ।।४५३।।
अन्वय :- जिन-भाषितं चारित्रं निर्वृते: अनुकूल: अध्वा (वर्तते) । (च) पर-भाषितं चारित्रं संसृते: अनुकूल: अध्वा (वर्तते) ।
सरलार्थ :- वीतराग-सर्वज्ञ भगवान द्वारा कहा गया २८ मूलगुणरूप चारित्र, वह मोक्ष के लिये अनुकूल मार्ग (उपाय) है और वीतराग तथा सर्वज्ञता से रहित किसी अन्य वक्ता द्वारा कहा गया चारित्र, वह संसार के लिये अनुकूल मार्ग है ।