योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 493
From जैनकोष
मोहकर्मजन्य रागादि भावों से आत्मा सदा भिन्न -
रागादय: परीणामा: कल्मषोपाधिसंभवा: ।
जीवस्य स्फेटकस्येव पुष्पोपाधिभवा मता: ।।४९४।।
अन्वय :- पुष्पोपाधिभवा: स्फेटकस्य (परिणामा:) इव जीवस्य रागादय: परीणामा: कल्मषोपाधिसंभवा: मता: ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार पुष्पों की उपाधि/निमित्त से स्फेटक के अनेक प्रकार के रंगादिरूप परिणाम/अवस्थाएँ होती हैं; उसीप्रकार मोहनीयकर्म के निमित्त से जीव के क्रोध-मान-मायालोभ ादिरूप रागादि परिणाम होते हैं ।