योगसार - जीव-अधिकार गाथा 58
From जैनकोष
क्षायोपशमिक ज्ञानादि भाव शुद्धजीव का स्वरूप नहीं -
क्षायोपशमिका: सन्ति भावा ज्ञानादयोsपि ये ।
स्वरूपं तेsपि जीवस्य विशुद्धस्य न तत्त्वत: ।।५८ ।।
अन्वय :- ये ज्ञानादय: अपि क्षायोपशमिका: भावा: ते अपि विशुद्धस्य जीवस्य तत्त्वत: स्वरूपं न सन्ति ।
सरलार्थ :- जो ज्ञानादिक गुणों की क्षायोपशमिक भावरूप पर्यायें/अवस्थाएँ हैं; वे सभी निश्चयनय की अपेक्षा से शुद्ध जीव का स्वरूप नहीं हैं ।