योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 270
From जैनकोष
अज्ञानी तथा ज्ञानी के विषय-सेवन का फल -
अज्ञानी बध्यते यत्र सेव्यमानेsक्षगोचरे ।
तत्रैव मुच्यते ज्ञानी पश्यताश्चर्य ीदृशम्।।२७०।।
अन्वय :- अक्षगोचरे सेव्यमाने यत्र अज्ञानी बध्यते तत्र एव ज्ञानी (बन्धत:) मुच्यते ईदृशं आश्चर्यं पश्यत ।
सरलार्थ :- स्पर्शादि इंद्रिय-विषयों के सेवन करने पर जहाँ अज्ञानी/मिथ्यादृष्टि कर्म-बन्ध को प्राप्त होते हैं, वहाँ ज्ञानी/सम्यग्दृष्टि उसी स्पर्शादि इंद्रिय-विषय के सेवन से कर्म-बन्धन से छूटते हैं अर्थात् कर्मो की निर्जरा करते हैं, इस आश्चर्य को देखो ।