योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 186
From जैनकोष
पुण्यबंध के कारण -
अर्हदादौ परा भक्ति: कारुण्यं सर्वजन्तुषु ।
पावने चरणे राग: पुण्यबन्धनिबन्धनम् ।।१८६।।
अन्वय :- अर्हत्-आदौ परा भक्ति:, सर्वजन्तुषु कारुण्यं, (च) पावने चरणे राग: (इदं सर्वं) पुण्य-बन्ध-निबन्धनम् (अस्ति) ।
सरलार्थ :- अरहंत आदि में उत्कृष्ट भक्ति, सर्व प्राणियों में करुणाभाव और पवित्र चारित्र के अनुष्ठान/आचरण में प्रीतिरूप भाव, ये सर्व परिणाम पुण्यबन्ध के कारण हैं ।