योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 341
From जैनकोष
समीचीन साधनों में आदर आवश्यक -
उपेयस्य यत: प्राप्तिर्जायते सदुपायत: ।
सदुपाये तत: प्राज्ञैर्विधातव्यो महादर:।।३४१।।
अन्वय :- यत: उपेयस्य (मोक्षस्य) प्राप्ति: सदुपायत: जायते । तत: प्राज्ञै: सदुपाये महा- आदर: विधातव्य: ।
सरलार्थ :- क्योंकि उपेय अर्थात् मोक्षरूप साध्य की सिद्धि समीचीन साधनों से होती है; इसलिए विद्वानों को समीचीन साधनों अर्थात् सम्यक् उपाय करने में अतिशय आदर रखना चाहिए ।