योगसार - संवर-अधिकार गाथा 234
From जैनकोष
ज्ञाता-दृष्टा रहना मोक्षमार्ग है -
सर्वं पौद्गलिकं वेत्ति कर्मपाकं सदापि य: ।
सर्व-कर्म-बहिर्भूतमात्मानं स प्रपद्यते ।।२३४।।
अन्वय :- य: (ज्ञानी) सर्वं कर्मपाकं अपि सदा पौद्गलिकं वेत्ति । स: सर्व-कर्म-बहिर्भूतं आत्मानं प्रपद्यते ।
सरलार्थ :- जो ज्ञानी जीव, पुण्य-पापरूप संपूर्ण कर्मो के इष्टानिष्ट फल को सदाकाल पुद्गल से उत्पन्न हुआ जानता-मानता है, वह सर्व कर्मो से रहित सिद्ध-समान अपनी (भावी) आत्म- अवस्था को (क्रम से) प्राप्त होता है ।