योगसार - संवर-अधिकार गाथा 248
From जैनकोष
भाव से निवृत्त होने की प्रेरणा -
विज्ञायेति निराकृत्य निवृत्तिं द्रव्यतस्त्रिधा ।
भाव्यं भाव-निवृत्तेन समस्तैनो निषिद्धये ।।२४८।।
अन्वय :- इति निवृत्तिं विज्ञाय द्रव्यत: त्रिधा निराकृत्य समस्त-एन: निषिद्धये (त्रिधा) भाव-निवृत्तेन भाव्यम् ।
सरलार्थ :- इसप्रकार द्रव्य-भावरूप दोनों निवृत्ति को अर्थात् त्याग को यथार्थ जानकर और द्रव्य निवृत्ति को मन-वचन-काय से छोड़कर अर्थात् उपादेय न मानकर/हेय मानकर ज्ञानावरणादि समस्त कर्मो को दूर करने के लिये त्रियोगपूर्वक भाव से निवृत्त होना चाहिए ।