रत्न
From जैनकोष
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सिद्धांतकोष से
- चक्रवर्ती, बलदेव व नारायण के वैभव−देखें शलाका पुरुष 2.6 ;
- चक्रवर्ती की नवनिधियों में से एक निधि−देखें शलाका पुरुष 2.9 ;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट−देखें लोक 5.13 ।
पुराणकोष से
(1) चक्रवर्ती के यहाँ स्वयमेव प्रकट होने वाली उसके भोगोपयोग की सामग्री । यह दो प्रकार की होती है― सजीव और अजीव । दोनों में सात-सात वस्तुएं होती हैं । कुल वस्तुएँ चौदह होती हैं । इनमें अजीव रत्न हैं― चक्र, छत्र, दंड, असि, मणि, चर्म और काकिणी तथा सजीवरत्न हैं― सेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्त्री, सिलावट और पुरोहित । (महापुराण 37. 83-84), (वीरवर्द्धमान चरित्र 5.45, 55-56)
(2) रुचक पर्वत की ऐशान दिशा का एक कूट । यहाँँ विजयादेवी रहती है । (हरिवंशपुराण - 5.725)