रात्रियोग विधि
From जैनकोष
मूलाचार/602 चत्तारि पडिक्कमणे किदियम्मा तिण्णि होंति सज्झाए। पुव्वण्हे अवरण्हे किदियम्मा चोद्दस्सा होंति।600।=प्रतिक्रमण काल में चार क्रियाकर्म होते हैं और स्वाध्याय काल में तीन क्रियाकर्म होते हैं। इस तरह सात सवेरे और सात साँझ को सब 14 क्रियाकर्म होते हैं।
नं॰ |
समय |
क्रिया |
6 |
सूर्यास्त के 2 घड़ी पूर्व से सूर्यास्त तक |
दैवसिक प्रतिक्रमण व रात्रियोग धारण |
अधिक जानकारी के लिये देखें कृतिकर्म ।4।