वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1054
From जैनकोष
यदिह जगति किंचिद्विस्मयोत्पत्तिबीजं, भुज गमनुजदेवेष्वस्ति सामर्थ्यमुच्चै:।
तदखिलमपि मत्वा नूनमात्मैकनिष्ठम्, भजत नियतचिता: शश्वदात्मानमेव।।1054।।
सकल चमत्कारों की आत्मनिष्ठता― हे भव्य जीव ! इस जगत में जो कुछ भी तीन लोक में विस्मय आश्चर्य उत्पन्न करने वाला भी चमत्कार है भवनवासी देवों का मध्यलोक में मनुष्य का, अर्द्धलोक में देव का जो कुछ भी सामर्थ्य है, चमत्कार है, समृद्धियाँ हैं जो कि विस्मय आश्चर्य को उत्पन्न करने का कारण है वह सब सामर्थ्य किसकी है? इसआत्मा की है। अपने आत्मा का अचिंत्य सामर्थ्य अनुभव नहीं करते और शरीर की दुर्लभता देखकर अपने में यह कल्पनाएँ करता कि हाय मुझमें बल नहीं रहा। अरे आत्मन् ! तेरे में तो अनंत बल है, वह कहाँ जायगा किसी वस्तु में यह सामर्थ्य है क्या कि किसी के बल को समाप्त कर दे शरीर शरीर है। चाहे यह इतना शिथिल हो जाय कि हाथ भी स्वयं न सरका सके इतना भी शिथिल हो जाय। होने दो, जहाँ पडा है पडा रहने दो। तुम्हारा आत्मा तो अचिंत्य सामर्थ्य वाला है। ऐसा ज्ञायकस्वरूप है कि समस्त सत् इसके ज्ञान में आये। ऐसा यह सर्वदर्शी है कि सब कुछ जाननहार इस आत्मा का यह दर्शन किया करे? इसमें ऐसा अनंत आनंद है कि जिस आनंद में कोई बाधा डाल ही नहीं सकता जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। अपनी सामर्थ्य को देखो। यदि मोह रखेगा, किसी पर में प्रतीति रखेगा तो उसका फल तो संसार के दु:ख ही है, फिर उनमें किसी पर एहसान क्यों डालना। त्रुटि जब हम खुद कर रहे हैं और अनात्मीय पदार्थ है पर वस्तु है उनमें जब प्रीति और मोह खुद उत्पन्न कर रहे हैं तब फिर कोई दु:ख मिले किसी की ओर से विपदायें आयें उसमें फिर दूसरे का अपराध क्यों निरखते? दूसरे पर एहसान क्यों डालते। खुद त्रुटि कर रहे। इस ही समय अनुभव कर लें, समस्तपरपदार्थों का विकल्प तोड़कर ज्ञानानंदस्वरूप सर्वविविक्त इस आत्मस्वरूप के निकट अपने ज्ञान को बैठाल लें और अनुभव कर लें कि संसार में मेरे लिए कोई विपत्ति नहीं है। मैं स्वयं ज्ञानानंदस्वरूप हूँ। यह आत्मा अनंत शक्ति का धारक है सो जिस प्रकार जिस रीति से इसके बाद बल प्रकट हो उस प्रकार से अपना यत्न करें यह आत्मबल नियम से प्रकट होगा। सीधी सी बात है कि समस्त पर पदार्थों को पर जानकर उनसे प्रीति मत करें, मोह मत करें। तू अब भी वैसा ही आनंदमय है जैसा कि इसके स्वभाव में है। इस आत्मा के प्रताप से बड़े-बड़े सामर्थ्य प्रकट होते हैं।