वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1059
From जैनकोष
द्दग्बोधनयन: सोऽयमज्ञानतिमिराहत:।
जानन्नपि न जानाति पश्यन्नपि न पश्यति।।1059।।
द्दग्बोधनयन आत्मा की अज्ञानतिमिराहत होने से अज्ञता― इस आत्मा के नेत्र हैं दर्शन और ज्ञान। सो इनके दर्शन ज्ञान रूपी दोनों नेत्र अज्ञान अंधकार से आवृत हो गए हैं अर्थात् नेत्र मुंद गए हैं। इसे अब साफ स्पष्ट सीधा यथार्थ नहीं दिखता है और न जानने में आता है, ऐसे अंध की स्थिति में यह प्राणी कुछ जानता भी हो तो कुछ जानता नहीं है, ज्ञानों में ज्ञान वही ज्ञान है जो ज्ञान ज्ञान के स्वरूप का ज्ञान करता रहे, विषय भी ज्ञान है अतएव उस विषय की ओर से भी इसका नाम ज्ञान है। जो क्रिया हो रही है वह भी मात्र जाननक्रिया हो रही है, सो उस करतब की दृष्टि से भी यह ज्ञान है और ज्ञान शक्ति का परिणमन है सो भी ज्ञान है। सो ज्ञानों में ज्ञान वही है जो ज्ञान का ही ज्ञान करता रहे। इसके अतिरिक्त अन्य किन्हीं पदार्थों को जाना करे यह ज्ञान का परिणमन तो जरूर है किंतु यह ज्ञान नहीं है, सब अज्ञान है जिस ज्ञान परिणमन में आकुलता बनी रहे वह क्या ज्ञान है, जैसे किसी रिश्ता या संबंध में बड़े क्लेश और विपदा बनी रहे तो वह काहे का संबंध है, लोग कह भी बैठते हैं। काहे का संबंध है, विपदायें ही विपदायें हैं, आराम तो होता ही नहीं, सुख तो होता ही नहीं, ऐसे ही समझिये कि जो ज्ञान ऐसे विषयों को करें, ऐसा अज्ञानरूप बने कि जिसमें विपदा और क्लेश ही भोगने में आये तो वह ज्ञान ज्ञान नहीं है अज्ञान है। तो यों कर्मों के उदय से इस आत्मा के दर्शन और ज्ञान नेत्र ढक गए हैं, आवृत हो गए हैं, अतएव यह आत्मा जानता हुआ भी नहीं जानता। यद्यपि जान रहा है कि यह अमुक नगर है, इसमें ऐसा प्रबंध है, ऐसे नियम हैं, लोग इस नीति पर चल रहे हैं, देश-विदेश का बहुत-बहुत ज्ञान भी करे तो ज्ञान तो कर लियापर ज्ञान करने वाला यह है कौन इसका कुछ परिचय नहीं है तो वह ज्ञान क्या रहा। वह तो एक विद्यार्थी जैसा अभ्यास है। एक स्कूल में इन्स्पेक्टर ने खबर भेजी कि हम कल दोपहर के बाद दो बजे बच्चों की परीक्षा लेने आयेंगे, सो मास्टर ने बच्चों की बहुत बड़ी तैयारी करायीऔर जो खास-खास प्रश्न थे वे बता दिये। देखो रूस में यह नदी प्रधान है। अमेरिका में यह, अमुक जगह यह पहाड़ प्रसिद्ध है, यों विश्व का खूब अध्ययन करा दिया, दूसरे दिन सारे बच्चे गर्व से बैठे थे कि इन्स्पेक्टर साहब जो भी पूछेंगे झट बता देंगे। जब इन्स्पेक्टर आया तो पूछता हे कि तुम्हारे गाँव के पास जो नाला बह रहा है वह कहाँसे आया है और कहाँजाकर मिल गया है? वे बच्चे इस प्रश्न पर कुछ बता ही न सके, उन्होंने तो विश्व की बातों का अध्ययन किया था। तो हम निकट का तो ज्ञान करें नहीं और बड़ा ऊँचा ज्ञान कर लें तो जैसे वह विडंबनारूप है ऐसे ही निकट की भी बात करें यह खुद में एक हूँ, जाननहार भी यह में खुद हूँ इसका मान भी न करें और बाहरी-बाहरी बातें जानते रहें तो वह ज्ञान कुछ ज्ञान नहीं है, ऐसी स्थिति में कितना भी जानना हो पर वह जानता हुआ भी नहीं जानता है। कुछ भी देख रहा हो दुनिया में पर वह देखता हुआ भी नहीं देखता। अरे भाई चाहिए तो शांति आनंद और शांति आनंद मिले नहीं, क्षोभ ही क्षोभ मचा रहे तो बाहर कितनी भी जानकारियाँ बनायें, कुछ भी देख भाल लें पर खुद तो गया बीता ही है।