वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1065
From जैनकोष
तथान्यैर्यमनियमावपास्यासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्जानसमाधय: इति षट्।।1065।।
कुछ साधकों का योग की षडंगता का अभिमत― कुछ लोग योग के अंगों को 6 बतलाते हैं कि आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, इनका स्वरूप वैसा ही है। उन्होंने यम और नियम को महत्त्व नहीं दिया है। कुछ लोग योगसिद्धि के उपाय में बतलाते हैं।