वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1335
From जैनकोष
अत: साक्षात्स विज्ञेय: पूर्वमेव मनीषिभि:।
मनागप्यन्यथा शक्यो न कर्तुं चित्तनिर्जय:।।1335।।
पूर्वाचार्यों ने प्राणायाम को तीन भागों में बांटा है― एक पूरक, दूसरा कुंभक और तीसरा रेचक। पूरक का अर्थ है हवा से पूरना अर्थात् श्वास में हवा को खींचना, कुंभक का अर्थ है― कुंभ मायने घड़ा। जैसे घड़े में जल भरा जाता है इसी तरह पेट के नाभि स्थान में हवा को रोकना―इसका नाम है कुंभक। और फिर धीरे-धीरे नासिका से हवा छोड़ना इसका नाम है रेचक। इन तीन प्रकार की क्रियावों का क्रम से वर्णन कर रहे हैं।