वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1365
From जैनकोष
अभिमतफलनिकुरंबं विद्यावीर्यादिभूतिसंकीर्णम्।
सुतयुवतिवस्तुसारं वरुणो योजयति जंतूनाम्।।1365।।
वरुणमंडल अर्थात् जलतत्त्व में चलने वाली श्वास इष्ट बल को प्रदान करती है। विद्याशक्ति आदिक विभूतियों से सहित तथा पुत्र स्त्री आदिक में जो सारभूत वस्तु है। मनोवांछित तत्त्व है उन सबको यह वरुणमंडल प्राप्त कराता है। जब श्वास गर्मी को लिए हुए न हो, इसी को कहते हैं शीतल श्वास। इस शीतल स्वर में जो बात सोची जाय अथवा इष्ट माना जाय उस सब कार्य की सिद्धि होती है।