वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1391
From जैनकोष
घोरतर: संग्रामो हुताशने मरुति भंग एव स्यात्।
गगने सैन्यविनाशं मृत्युर्वा युद्धपृच्छायाम्।।1391।।
कोई युद्ध के संबंध में बात पूछे― अमुक युद्ध में हमारा कोई गया है, युद्ध के संबंध में पूछे तो अग्नितत्त्व में तो यह उत्तर आयगा कि तीव्र संग्राम हो रहा है और वायुतत्त्व में भंग होना कहेंगे। और आकाशतत्त्व में सेवा के विनाश का उत्तर होगा। यद्यपि अभी तक कोई आकाशमंडल का श्वास नहीं कहा है तब संगति बैठालने के लिए तो यह उचित था कि युद्धतत्त्व में प्रश्न करे तब तो संग्राम अग्नितत्त्व में विनाश और पृथ्वीतत्त्व में संग्राम का भंग होना बताया जा सकता है।