वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1531
From जैनकोष
बंधमोक्षावुभावेतौ भ्रमेतरनिबंधनौ।
बंधश्च परसंबंधाद् भेदाभ्यासात्तत: शिवम्।।1531।।
बंध और मोक्ष दो तत्त्व हैं। स्वद्रव्य मायने आत्मा और परद्रव्य मायने देहादिक पौद्गलिक― इन दोनों का मानना यही तो हे बंध और स्व और पर में भ्रम न रहे, भिन्न-भिन्न ज्ञान में आये कि आत्मा तो यह है, शेष सब कुछ पर हैं यों भ्रम समाप्त होने से मोक्ष होता है। सीधा सारांश यह है कि जब तक पर के साथ संबंध बना रहेगा तब तक तो बंध है, कर्मबंधन है और जब भेद में अभ्यास कर लेगा―यह भिन्न है, यह में आत्मतत्त्व जुदा हूँ― इस प्रकार भेद का अभ्यास करेंगे तो उससे मोक्ष होता है।