वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1718
From जैनकोष
न दृश्यंतेऽत्र मे मृत्या न पुत्रा न च बांधवा: ।
येषां कृते मया कर्म कृतं स्वस्यैव घातकम् ।।1718।।
जिनके लिये पाप किये उनके नरक में न दिखने पर सकृत पाप का पश्चाताप―अहो ! अब वे नौकर मुझे नहीं दिख रहे हैं जिन नौकरों के लिए मैने अपना ही घात करने वाले कर्म किया । अब वे पुत्र मुझे यहाँ नहीं दिख रहे जिन पुत्रों के वास्ते मैंने अनर्थ अपना ही घात करने वाले नाना पापकर्म किया । जिनके पीछे मैंने पापकर्म किया, जिसके फल में नरक में जन्म लेना पड़ा, अब वै लोग यहाँ एक भी नहीं दिख रहे हैं । सारा क्लेश हमें अकेले ही भोगना पड़ रहा है । वे बांधव परिवार मित्रजन वे सब कुछ भी यहाँ नहीं दिखते हैं । जो अन्याय करके, लोगों को धोखा देकर धनोपार्जन किया जाता है अथवा नाना प्रकार के छल कपट किए जाते हैं, उस द्रव्य का जो-जो लोग भोग करते हैं उन सबमें पाप बँट जायें, ऐसा नहीं है । जिसने जो पाप किया उसका वह पूरा पाप है । दूसरे घर के परिवार के लोग यह जानकर भी कि यह धन बहुत से लोगों को सताकर आया है, अन्याय कर के आया है, वे मौज से खायें तो वे नया पाप और बाँधते हैं, पर इस पुरुष के पाप को वे बाँटते नहीं हैं । जो मनुष्य जैसा अपना परिणाम करता है उसके अनुसार कर्म का बंध उसके स्वयं होता है । उसमें ऐसा नहीं है जैसे कि लोग संतोष करते हैं कि भले ही हम पाप कर्म करते हैं, मगर इस धन का भोग तो घर के ये दसों लोग करते तैं उन दसों में वह पाप बँट जायगा तो मेरे पाप कम हो जायेंगे, ऐसी बात नहीं है क्योंकि पाप का भंडार कम नहीं है । तो जिन लोगों के लिए मैंने पापकर्म किया, अपने आपकी बरबादी के कर्म किया । अब वे लोग यहाँ एक भी नहीं दिखते हैं । मेरा कोई साथी नहीं हो रहा है ।