वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 190
From जैनकोष
यया कर्माणि शीर्यंते बीजभूतानि जन्मन:।
प्रणीता यमिभि: सेयं निर्जरा जीर्णबंधनै:।।190।।
निर्जरणभूमिका―जिस निर्जरा के द्वारा कर्म नष्ट कर दिये जाते वह निर्जरा मोक्ष में ले जाने वाली निर्जरा है ऐसा संयमी पुरुषों ने कहा है। ये कर्म जन्म मरण कराने के कारणभूत हैं। इन कर्मों से हम आपमें बड़ी विचित्रता उत्पन्न हो जाती है। एक समान नहीं रह सकते हम आप। कभी किसी तरह की कल्पनाएँ जगती हैं, कभी किसी तरह की और उन्हीं कल्पनाओं से यह जीव बेचैन रहता है। भला बतलावो यह समस्त लोक कितना बड़ा है? कितना बड़ा तो अधोलोक और कितना विशाल ऊर्ध्व लोक और कितना विशाल अन्य समस्त स्थावर लोक? सब कुछ मिलाकर 343 घनराजू प्रमाण लोक बनता है। इतने बड़े लोक में आज जितनी जगह का हम आपको परिचय है? यह समुद्र की एक बूँद बराबर जगह है। इतनी सी जगह का ममत्व करके कौनसी सिद्धि पा लेगा यह जीव?
जीवन की विनश्वरता का प्रत्यय―भैया ! जीवन है जल के बबूले की तरह। जैसे ऊपर से जल गिरने से बबूला बन जाता है तो वह कितनी देर ठहरता है? क्या यह बबूला बना रहने के लिए बना है। वह तो मिटेगा। क्या हम आपका यह जीवन जीवन बना रहने के लिए बना है? यह तो मिटेगा। और ये सब मिटने की ही तो निशानी हैं। बढ़-बढ़कर जवानी निकल गयी, बुढ़ापा आ गया और वह भी बहुत जल्दी से बढ़ रहा है। तो ये सब बातें जीवन न रहेगा इसी के ही तो संकेत हैं और संकेतों का क्या प्रयोजन? आँखों देखते तो रहते हैं, कितने ही लोग मरते हैं पर फिर भी इन मरने वालों को देखकर भी समझ नहीं आ पाती, यह कितने खेद की बात है।
तद्भवमरण के अवबोध का दृढ़ीकरण―कोई शराब पीने वाला व्यक्ति शराब बेचने वाले की दुकान पर जाय और वह दुकानदार से कहे देखो मुझे बहुत बढ़िया शराब देना तो वह विश्वास देता है। हाँ हमारे पास बहुत बढ़िया शराब है।...अजी नहीं, अमुक शराब देना। हाँ हाँ वही है। नहीं बहुत बढ़िया देना। तो वह दुकानदार कहता है हमारे यहाँ बहुत ही अच्छी शराब है। इसका प्रमाण यह है कि देखो मेरी दुकान पर दसों आदमी शरीर बेहोश पड़े हुए हैं। बेहोश पड़े हुए लोगों को देखकर भी उसकी शराब का विश्वास नहीं हो रहा है कि वहाँ बहुत बढ़िया शराब मिलेगी। यों ही यहाँ हम आप सभी देख तो रहे हैं कि ये अनेक लोग मर रहे हैं, पर अपने बारे में सही विश्वास नहीं बना पाते कि इसी तरह हमें भी मरना है।
निर्जराभाव का उत्सहन―भैया ! मर कर के कहाँ पैदा हो गए, फिर यह परिचय वाली जगह इसके लिए क्या रहेगी? तो कितने से परिचय के साधनों में ममत्व किया जाय, कितने से परिचित लोगों के लिए अपना समस्त संयम बिगाड़ दिया जाय? यहाँ कुछ भी सारभूत बात नहीं है। इस जीव पर कर्मों का भार लदा है यही तो बड़ी विपदा है। उस विपदा को दूर करने का यत्न करना है। ये समस्त कर्म जन्म-मरण के कारणभूत हैं। इन कर्मों को संयमी पुरुष ही दूर किया करते हैं। जिनके बंधन गल गए हैं, जिनके कर्मों की निर्जरा चल रही है ऐसे ऋषि संतों ने यह रहस्य बताया है कि शुद्ध तत्त्व का आदर करें और निज शुद्ध ज्ञानस्वरूप में अपने ज्ञान को मग्न करें तो यह निर्जरा तत्त्व प्रकट होगा और निर्जरा से ही यह जीव हल्का होगा, भाररहित बनेगा और सर्वकर्मों से मुक्त होकर फिर अपने ऊर्ध्व-गमन स्वभाव के कारण लोक के शिखर पर जा विराजमान् होगा।