वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2040
From जैनकोष
सर्वज्ञं सर्वदं सार्व वर्द्धमानं निरामयम् ।
नित्यकमययमव्यक्तं परिपूर्णं पुरातनम् ।।2040।।
सर्वज्ञ प्रभु का स्मरण―ये प्रभु सर्व के ज्ञाता हैं और सर्व कुछ देने वाले हैं । प्रभु के गुणों का कोई भक्त यथार्थ रूप में अवलोकन कर ले, ध्यान कर ले तो उसे सब कुछ तो मिल गया । उसके कुछ चाह ही न रही तो सब मिल गया । चाह के न रहने का नाम है सर्व अर्थो की सिद्धि होना । तो प्रभु की भक्ति जो लोग करते हैं उन्हें सर्व कुछ प्राप्त होता है । ये प्रभु सबके हितकारी हैं । उन प्रभु के किसी भी प्रकार का रागद्वेष नहीं है । वे तो सदा निर्दोष ज्ञानानंद का ही अनुभव किया करते हैं । ये प्रभु वर्द्धमान हैं, अर्थात् बढ़ते हुए हैं । इसमें चौबीस तीर्थंकर आ जाते हैं और सभी अर्हत आ जाते हैं, वे सभी वर्द्धमान हैं, ये सर्वरागों से रहित हैं, अविनाशी हैं, और सबको अव्यक्त हैं । जो पुरुष ज्ञानी हैं, आत्मा के स्वरूप के ज्ञाता हैं उनको तो प्रभु का स्वरूप कुछ व्यक्त होता है, पर अज्ञानी जनों को रंचमात्र भी व्यक्त नहीं होता । वे परिपूर्ण हैं और पुरातन हैं, परम हैं, ये अनादि से चले आये हुए हैं ।