वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2095
From जैनकोष
न स्वामित्वमत: शुक्ले विद्यतेऽत्यल्पचेतसाम् ।
आद्यसंहननस्यैव तत्प्रणीतं पुरातनै: ।।2095।।
प्रथम संहनन बिना शुक्लध्यान में स्वामित्व का अभाव―जब कि विषयों से व्याकुलचित्त होने से शक्ति कमजोर है और शारीरिक ढांचा भी कमजोर है तो ऐसे पुरुष के शुक्लध्यान की पात्रता नहीं होती है । अब इस प्रकरण के बाद शुक्लध्यान का वर्णन आयगा । शुक्ल का अर्थ है सफेद, जहाँ कोई रंग नहीं उसे कहते हैं श्वेत । ऐसा ध्यान जो सफेद है, जिसमें रागद्वेष का कोई रंग नहीं चढ़ा हुआ है ऐसी स्थिति में जो ध्यान होता है वह शुक्लध्यान है । तो ऐसे ऊँचे ध्यान की योग्यता हीन संहनन बालों के नहीं होती है । ऊँचे ध्यान की योग्यता तो वज्रवृषभनाराच संहनन वालों के होती है । वैसे शुक्लध्यान में उपशम श्रेणी में रहने वाले को पहिला शुक्लध्यान होता है उनके आदि के तीन संहनन संभव हैं । सो आदि के तीन संहनन होने पर भी हो जाता है, पर शुक्लध्यान की विशिष्ट योग्यता वज्रवृषभनाराचसंहनन बिना नहीं होती है । उसका कारण क्या है सो अभी बतावेंगे । यह वज्रवृषभनाराचसंहनन का शरीर इतना पुष्ट होता है कि कहीं ऊँचे से गिर भी जाय तो भी, चाहे पत्थर में आघात पहुंचे, टूट फूट जाय पर शरीर में किसी भी प्रकार का कोई उपद्रव नहीं होता । इतना प्रबल संहनन होता है ।
वज्रवृषभनाराच संहनन की प्रबलता का एक उदाहरण―जिस समय हनुमान बालक को उसकी अंजना माता अपने मामा के साथ विमान में लिए जा रही थी तो रास्ते में वह नन्हासा बालक खेलता कूदता विमान से नीचे एक पहाड़ पर गिर गया । अब उसकी माता अंजना को बड़ा शोक हुआ, सोचा कि उसकी स्थिति क्या होगी? खैर देखना तो था ही । जब विमान नीचे उतरा तो अंजना ने क्या देखा कि जिस पत्थर की शिला पर वह हनुमान बालक गिरा था वह तो टूट फूट गयी थी और वह बालक अपने पैर का अंगूठा चूस रहा था । उसे देखकर उसकी माँ को बड़ा आश्चर्य हुआ । समझ लिया कि यह मोक्षगामी जीव है, इसके शरीर में वज्रवृषभनाराच संहनन है, यह शीघ्र ही मोक्ष जायगा । तभी तो हनुमान को लोग बजरंगबली बोलते हैं । तो उनका यह बोलना ठीक हैं । हनुमान वज्रांगबली थे अर्थात् उनका शरीर बज्र का था । अंजना व हनुमान जी के नाना ने हनुमान की तीन प्रदक्षिणा देकर प्रणाम किया, तो जिनका बहुत छोटा चित्त है, जिनका संहनन हीन है ऐसे पुरुष शुक्लध्यान के स्वामी नहीं होते । ऋषीश्वरों ने बताया है कि प्रबल संहनन वालों के ही शुक्लध्यान होता है ।