वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 55
From जैनकोष
ताश्च संवेगवैराग्ययमप्रशमसिद्धये।
आलानिता मन: स्तंभे मुनिभिर्मोक्तुमिच्छुभि:।।55।।
मुमुक्षुओं द्वारा भावनाओं का आदर― मोक्षाभिलाषी साधु संतों ने अनित्यादिक बारह भावनाओं का संवेग, वैराग्य, यम व प्रशम की सिद्धि के लिये अपने मनरूपी खंभे में बांधा है अर्थात् मन में उन्हें ठहराया है। धर्म से अनुराग करने व संसार से भय करने को संवेग कहते हैं, संसार, शरीर व भोगों से विरक्त होने को वैराग्य कहते हैं। यावज्जीव अहिंसादि महाव्रतों के धारण करने को यम कहते हैं। कषायों के दूर करने को प्रशम कहते हैं। इन गुणों की सिद्धि के लिये साधु संतजन अनित्यादिक बारह भावनाओं को भाते हैं।