वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 52
From जैनकोष
एकस्याल्पा हिंसा ददाति काले फलमनल्पम् ।
अन्यस्य महाहिंसा स्वल्पफला भवति परिपाके ।।52।।
परिणाम का अल्प हिंसा का महान् फल तथा महाहिंसा का स्वल्प फल―चूंकि अपने रागादिक विषय कषाय आदिक परिणामों से अपनी हिंसा होती है इस कारण कोई पुरुष बाह्य हिंसा तो थोड़ी कर सका परंतु अपने परिणामों में हिंसा का भाव अधिक लगाता हे तो तीव्र कर्म का बंध होता है और उस पुरुष को उसका फल भोगना पड़ता है । कर सके कोई थोड़ी हिंसा पर परिणाम में महाहिंसा का दोष है तो उसका भी फल भोगना पड़ता है । कोई जीव परिणामों में उतना हिंसा परिणाम नहीं रख रहा पर बाह्य में हिंसा बहुत हो जाये तो उसे थोड़े कर्मों का बंध होता है, बाह्य में हिंसा अधिक हो जाने पर भी यदि परिणामों में हिंसा की बात अधिक नहीं हे, अल्प है तो उसे कर्मफल अल्प भोगने पड़ते हैं । अभी कोई छोटा आदमी किसी बड़े आदमी का मुकाबला करता है तो उस छोटे आदमी को संक्लेश बहुत करना पड़ता है तब वह बाद में एक आध थप्पड़ लगाता है और बड़े आदमी को जरा भी गुस्सा आये तो फटाक से मार देता है, तो उस बड़े को थप्पड़ लगाने में कम हिंसा हुई और उस छोटे को चूंकि बड़ा संक्लेश करना पड़ा तो हिंसा अधिक लगी । कोई पुरुष थोड़ी हिंसा कर पाता है, पर परिणामों में बड़ा संक्लेश हे तो उसे हिंसा अधिक लगती है और किसी पुरुष से बड़ी हिंसा हो जाती है, पर परिणाम संक्लेशमयी नहीं हैं तो उसे कम हिंसा लगती है । तो इससे यह सिद्ध हुआ कि हिंसा परिणामों के कारण लगती है परवस्तु के कारण नहीं लगती ।