वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 55
From जैनकोष
एक: करोति हिंसां भवंति फलभागिनो वहव: ।
बहबो विदधति हिंसां हिंसाफलभुग्भवत्येक: ꠰꠰55।।
आशयवश एककृतहिंसा के अनेकों की फलभागिता व अनेककृतहिंसा के एक की फलभागिता―देखो एक पुरुष तो हिंसा करता है परंतु फल भोगते हैं बहुत । किसी ने सांप मारा तो मारा एक ने और देखने वाले पचासों लोग खुश हुए तो उन पचासों को उसका फल भोगना पड़ेगा और हिंसा करते हैं बहुत लोग मिलकर लेकिन फल भोगता एक । जैसे राजा ने सेना को आर्डर दिया तो सेना ने हजारों लोगों को मार डाला पर उसका फल भोगा एक राजा ने ।