वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 148
From जैनकोष
बलसोक्खणाणदंसण चत्तारि वि पायडा गुणा होंति ꠰
णट᳭ठे घाइचउक्के लोयालोयं पयासेदि ꠰꠰148꠰꠰
(559) धर्म और अधर्म जिसके कि आश्रय से मोक्षमार्ग व संसारमार्ग होता है―जब चार घातिया कर्म में नष्ट हो गए तब अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनंद प्रकट हो गया ꠰ ज तक जीव के मोह है तब तक शांति की कल्पना मत करो ꠰ शांति से हाथ धोये बैठे रहो ꠰ मोह पर विजय हो तब मोक्षमार्ग का प्रारंभ है ꠰ घर में मोह बनाये रहे और धर्म भी करते रहें दोनों बातें एक साथ नहीं होती ꠰ मोह अधर्म है ꠰ जहां मोह है वहां धर्म नहीं हो सकता ꠰ फिर आप कहेंगे कि तो क्या घर छोड़ दें ? क्या घर में रहकर धर्म न बनेगा ? घर में रहकर भी धर्म बनेगा ꠰ घर में प्रेम किए बिना नहीं रह सकते, क्योंकि परस्पर सहयोग का नाम घर है, सो राग किए बिना नहीं रह सकते, पर मोह बिना तो रह सकते ꠰ इनका अंतर जान लो ꠰ मोह न रखे और बने रहें घर में, तो भी धर्म हो जायेगा, मगर मोह है तो धर्म नहीं हो सकता ꠰ मोह और राग में अंतर क्या है ? मोह में तो यह भाव रहता है कि अनंत काल तक मुझे ऐसा ही सुख मिले, कुटुंब मिले, धन मिले, यह ही सार है, ऐसा भीतर में भाव रहता है मोह में, और राग में―जो मोहरहित राग है वहां यह चेत रहती है कि ये सब जीव जुदे हैं, स्वतंत्र हैं, ये अपने कम्र से सुख दु:ख पाते हैं, मेरे ये कुछ नहीं लगते ꠰ इतना जानकर भी घर में अगर राग न रखे तो फिर खाना भी न मिलेगा, घर में रहना दुस्वार हो जायेगा ꠰ सो राग रखना भी पड़ता है ꠰ तो मोह न होकर राग रहे वह है निर्मोहराग ꠰ और मोह रहे तो अज्ञान है ꠰
(560) मोह व राग के अंतर का एक दृष्टांत―राग व मोह के अंतर का परिचय आप एक बीमारी से ले सकते हैं ꠰ ज आप कभी बीमार होते, बुखार होता तो उस बुखार में आप बड़ा आराम भी तो चाहते ꠰ डाक्टर भी बुलवाते, अच्छा गद्देदार पलंग भी चाहते, और और भी सब प्रकार के आराम चाहते हैं ꠰ दवा समय पर मिले, तो बीमार अवस्था में बताओ आपको दवा से राग है कि नहीं ? राग है पर उस दवा से मोह भी है क्या ? नहीं है मोह ꠰ मोह तो तब कहलाता ज आपका यह आशय रहता कि बड़ा आनंद आ रहा है ꠰ खूब दवा मिल रही है ꠰ ऐसी दवा मुझे जिंदगी भर मिले ऐसा भीतर में भाव हो तो समझो कि आपको दवा से मोह है ꠰ पर ऐसा भाव तो किसी को नहीं रहता, तो समझो कि दवा से आपको मोह नहीं रहता ꠰ बल्कि वहां आपका यह भाव रहता है कि जल्दी ही दवा पीना मेरा छूट जाये, इसीलिए समय-समय पर दवाई लेने का बड़ा ध्यान रखते ꠰ यदि दवा से आपको मोह होता तो आपका यह भाव रहता कि दवा मेरी कभी न छूटे, दवा छूटने की कभी कल्पना तक न होती ꠰ तो इससे आप यह जाने लें कि मोह और राग में क्या अंतर है ꠰ आप डाक्टर से बड़े प्रेम से बोलते और उसे रुपये भी देते, इतना प्रेम है आपको डाक्टर से, मगर यह तो बताओ कि उस डाक्टर से आपको मोह है क्या ? नहीं है मोह ꠰ मोह तो तब कहलाता जब यह भाव रहता कि यह डाक्टर मेरे को बहुत प्यारा है, यह रोज-रोज मेरी दवा करता रहे, मेरे से ये कभी न हटे꠰ पर इस प्रकार का भाव तो कोई नहीं रखता, बल्कि मन में यह बात सदा बनी रहती कि कब मेरा यह झंझट छूटे, कब मेरा यह दवा लेना बंद हो और मैं प्रतिदिन मील दो मील जगह घूम आया करूं ꠰ तो मोह नहीं है डाक्टर से ꠰ मगर राग है ꠰ मोह में और राग में क्या अंतर है सो बतला रहे हैं ꠰
(561) मोहरहित राग―जैसे किसी लड़की का विवाह हुए मानो कुछ दिन बीत गए, दो चार बार ससुराल हो आयी फिर भी ज वह ससुराल जायेगी तो रोकर जायेगी ꠰ और, भीतर में यह भाव भरा है कि मैं जल्दी घर पहूंचूं , बरसात के दिन हैं, कहीं पानी चू चा न रहा हो, कोई चीज खराब न हो जाये, सो भीतर से तो ससुराल जाने की उमंग है पर उसे रोना पड़ता है, क्या करें, परिस्थिति ही कुछ ऐसी है ꠰ तो अब वह जो रोया घर छोड़ने के लिए तो उसमें क्या मोह काम कर रहा ? अरे उसमें मोह नहीं काम कर रहा, उसमें तो राग है ꠰ काहे का राग ? लोकलाज का राग ꠰ लोग क्या कहेंगे कि देखो इसको अपना घर छोड़ने पर जरा भी दु:ख नहीं हो रहा, इस लोकलाज के कारण उसे रोना पड़ता है, पर अंदर से उसे मोह नहीं है ꠰ तो मोह और राग में अंतर बताया जा रहा है ꠰ अनेक घटनायें आपको ऐसी मिलेगी कि राग तो है पर मोह नहीं ꠰ और भी देखिये―ज किसी बारात की निकासी होती हे तो उसमें दूल्हा घोड़े पर चढ़कर चलता है, उसे घुड़चढ़ी भी बोलते ꠰ तो वहां क्या होता कि उस दूल्हे के साथ-साथ पास पड़ोस की बहुत सी स्त्रियां गीत गाती हुई चलती हैं―मेरा दूल्हा बना सरदार, राम लखनसी जोड़ी आदि, वे स्त्रियां उस दूल्हे को बहुत मेरा मेरा करती हैं मगर यह तो बताओ कि उनको उस दूल्हे से जरा भी मोह है क्या ? मोह बिल्कुल नहीं है, हां राग अवश्य है ꠰ राग भी किस चीज का ? संभव है कि जो छटांक आधपाव बताशे मिलेंगे उनका राग हो ꠰ उन्हें उससे मोह नहीं रहता ꠰ मोह रहता उस दूल्हे की मां को, जिसको कि उस दूल्हे के पास खड़े होने की भी फुरसत नहीं, उससे बोलने की भी फुरसत नहीं ꠰ उसके सामने इतने काम रहते कि वह उन्हीं को निपटाने में पड़ी रहती है ꠰ अब आप इस बात पर विचार करें कि मान लो कदाचित् वह दूल्हा घोड़े से गिर जाये और उसकी टाँग टूट जाये तो कौन रोयेगा ? उसकी मां या वे पास पड़ोस की स्त्रियां ? अरे उसकी मां ही रोवेगी, पास पड़ोस की स्त्रियां न रोवेगी ꠰ तो समझमें आया कि उन पास पड़ोस की स्त्रियों को उस दूल्हे से मोह नहीं है, किंतु राग है ꠰ राग और मोह में इस प्रकार का अंतर है ꠰
(562) प्रभु के अनंत ज्ञान दर्शन, बल व आनंद―यहां यह बात कह रहे कि घातिया कर्मों का नाश होने पर अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनंद प्रकट होता है ꠰ ज्ञान के द्वारा समस्त लोकालोक को जान लिया लोक मायने जिसमें जीव, पुद᳭गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये छहों द्रव्य रह रहे और जहां सिर्फ आकाश ही आकाश है, अन्य द्रव्य नहीं है, वह तो है अलोकाकाश ꠰ तो भगवान लोक को भी जानते, और अलोक को भी जानते ꠰ इतना ही उनका दर्शन है और ऐसी ही अनंत शक्तियां हैं, और ऐसा ही अनंत आनंद है ꠰ घातिया कर्म के नष्ट होने पर ये चार अनंत गुण प्रकट हो जाते हैं ꠰ ज्ञान त्रिलोक त्रिलोकवर्ती समस्त पदार्थों को जानता है और ऐसा ही जानने के लिए खुद का दर्शन किया तो उतना ही दर्शन बन गया ꠰ और ये ज्ञान दर्शन अनंत चल रहे, नहीं थके, एक समान चल रहे यह है अनंत बल और अनंत आनंद है जिसमें आकुलता रंच नहीं ꠰
(563) प्रभु के आनंद का साधारण अनुमान―सिद्ध भगवा नके कितना दु:ख होता है ? अनंत सुख ꠰ एक इस तरह भी सोच सकते कि चक्रवर्ती के जितना सुख होता है उससे अधिक होता है भोगभूमिया में पैदा हुए मनुष्य के ꠰ कुछ ध्यान में लावो, जिसका छह खंड का राज्य है, चक्रवर्ती है, उसको तो लोग बड़ा सुख मानते हैं, उस सुख से भी अधिक सुख है भोगभूमिया मनुष्य में ꠰ भोगभूमिया मनुष्य वह कहलाता कि जहां जुगुलिया तो पैदा हों, याने लड़का लड़की एक साथ पैदा हों और जैसे ही वह पैदा हुए वैसे ही माता-पिता मर गए ꠰ यह भोगभूमिया के सुख की बात बतला रहे हैं ꠰ अगर माता पिता उन बच्चों का मुख देख लें तो उनको दु:ख रहेगा ꠰ और उन बच्चों की स्वयं ही परवरिश होती है अपने आप ꠰ भोगभूमिया क्षेत्र ऐसा है, वहां सांसारिक दृष्टि से बहुत सुख है, और उनसे अधिक सुख है देवों के ꠰ और इन सब सुखों को जोड़ लें ꠰ तीनों कालों में जितना सुख भोगा होगा ऐसे जीवों ने, उस सुख से भी अनंतगुणा सुख है भगवान के ꠰ उस सुख की जाति ही निराली है ꠰ यहां के सुख तो हैं दु:ख से भरे हुए ꠰ भगवान का सुख है दु:ख से अत्यंत रहित, ऐसा उनका अनंत सुख है ꠰ यह सब जो प्रताप बतला रहे हैं यह सम्यक्त्व सहित चारित्र का प्रताप है ꠰
(564) मिथ्यात्व अव्रत दुराचार के योग में विशेष दुर्गति―मिथ्यात्व के मायने है कि आत्मा े स्वरूप की सुध न हो और देह को और कषाय को ही माने कि यह ही मैं हूं तो ऐसा जिसके मिथ्यात्व भाव लगा है उसको मोक्षमार्ग नहीं मिल पाता ꠰ पहले मोक्षमार्ग का दर्शन तो हो फिर कषायों को ढीला करके जो करने चलेगा तो जब तक मिथ्यात्व भाव है, मोह है, अज्ञान है तब तक मोक्षमार्ग नहीं ꠰ धर्म की प्रवृत्ति नहीं, शांति नहीं ꠰ भले ही मिथ्यात्व भी है ꠰ उसे कौन जानता फिर भी अगर व्रत धारण करे, कुछ थोड़ा तपश्चरण करे, स्वाध्याय आदिक करे तो उसके पुण्य बंध तो होगा ही होगा जिससे आगे सद᳭गति मिलेगी ꠰ बाकी काम वहां बनेगा ꠰ अगर सम्यक्त्व भी नहीं है और व्रत से इन पुण्य की क्रियाओं से घृणा करे तो उसकी तो दुर्गति निश्चित है ꠰ व्रत मिथ्यात्व हो तो करे न हो तो करे, अज्ञानी है तो भी संयम धारण करे, न होगा वह भावसंयम, न मिलेगा मोक्षमार्ग पर संयम धारण करने से गति तो आगे सुधरेगी और मान लो पाप से, हिंसा से, अव्रत से, दुर्गति में गए तो फिर क्या कर सकते ꠰ तो व्रतों का पालन दुर्लभ मनुष्यभव में हुत आवश्यक है ꠰