वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 28
From जैनकोष
छत्तीस तिण्णि सया छावटि᳭ठसहस्सवारमरणाणि ।
अंतोमुहुत्तमज्झे पत्तोसि निगोयवासम्मि ꠰꠰28꠰।
(44) परमार्थभाव के अग्रहण में निगोदवास के जन्ममरण के कष्ट―पहले कुछ गाथाओं में कुमरण का वर्णन चला था । जो जीव परमार्थ ज्ञायकस्वभाव से अनभिज्ञ हैं और बाह्यदेहादिक में आत्मत्व का अहंकार रखकर व्रत तप आदिक भी करते हैं वे जीव नरक निगोद आदिक चतुर्गतियों के दुःख को भोगते हैं । अब यहाँ उस निगोदिया जीव के जन्ममरण के दुःख का वर्णन किया जा रहा है । हे आत्मन् ! निगोदवास में एक अंतर्मुहूर्त में 66336 बार जन्म मरण किया है । इस गाथा में निगोद शब्द दिया है और जिसकी संस्कृत छाया निगोत शब्द बताया है । उससे ही सिद्ध होता है । निगोद तो साधारण वनस्पति का नाम है और निगोत कहने से जितने भी लब्ध्यपर्याप्तक जीव हैं दोइंद्रिय, तीनइंद्रिय, चारइंद्रिय, और पंचेंद्रिय में, वे सब निगोत में आ जाते हैं । तो निगोद में एक श्वास में 18 भाग प्रमाण आयु पाते हैं और ऐसी ही आयु सभी लब्ध्यपर्याप्तकों की होती है । इससे इस गाथा के अर्थ में निगोत शब्द कहकर सिर्फ साधारण वनस्पति लिया जाये तो वह भी युक्त है और निगोत शब्द कहकर सभी लब्ध्यपर्याप्तकों को लिया जाये तो वह भी युक्त है । तब साधारण वनस्पति में कितने ही वर्ष रह सकते हैं । रहेंगे वे एक श्वास में 18 बार जन्ममरण करने वाले, मगर उसकी परंपरा चले तो अनंत काल तक चलती है । अनादि से अब तक कितने ही जीव साधारण वनस्पति में रहकर निगोद का दुःख पा रहे हैं । तो निगोद में एक श्वास के 18वें भाग प्रमाण आयु है । तो एक मुहूर्त में कितने कहलाये ? 66336 बार क्योंकि एक मुहूर्त में 3773 श्वांस निकलते हैं । ये श्वांस मुख से लिए जाने वाले नहीं हैं किंतु नाड़ी के एक बार के फड़कने को एक श्वांस बोलते हैं, अब उन 3773 श्वासों में जो एक अंतर्मुहूर्त बनता है उनमें 3685 श्वांस निकलते हैं और एक श्वांस को तीसरे भाग से 36336 बार निगोद में जन्म मरण होता याने ये जो जन्म मरण बतलाया है सो पूरे मुहूर्त के नहीं हैं, किंतु एक श्वांस में कुछ कम रह जाते हैं उतने बार यह जीव सम्यग्दर्शन का भाव पाये बिना मिथ्यात्व के उदयवश दुःख सह रहा है ꠰ यहाँं जो 36336 बार एक अंतर्मुहूर्त में जन्ममरण कहा है सो पूरा अंतर्मुहूर्त लेकर सिर्फ 88 श्वांस घटाकर मुहूर्त लेना । ऐसी सूक्ष्म अंतर की भी तो बात है इसलिए यह बात प्रसिद्ध हैं कि एक अंतर्मुहूर्त में निगोद का 66336 बार जन्म मरण होता है ।