वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 29
From जैनकोष
वियलिंदए असीदी सट᳭ठ चालीसमेव जाणेह ।
पंचिंदिय चउवीसं खुद्दभवंतो मुहूत्तस्स ।।29।।
(45) निगोत के अन्यजातिक जन्ममरणों का विवरण―ऊपर की गाथा में निगोद शब्द कहा है, उसका अर्थ निगोत लिया जाता है, तो उसमें सभी लब्ध्यपर्याप्तकों के जन्ममरण शामिल किए जाने चाहिए और इस तरह एकेंद्रिय के कितने और दो इंद्रिय आदिक के कितने जन्म मरण है उस हिसाब से गणना बतलाते हैं । अंतर्मुहूर्त के इन भवों में जो 66336 कहा गया है उनमें दो इंद्रिय के क्षुद्रभव 80, तीनइंद्रिय के क्षुद्रभव 60 और चार इंद्रिय के छुद्रभव 40 और पंचेंद्रिय के क्षुद्रभव 24 शामिल हैं । शेष साधारणवनस्पति के हैं । तो अब सिद्धांत के अनुसार यह बात रही कि क्षुद्रभव एकेंद्रिय में 66132 होते हैं और वे 11 स्थानों में एक-एक 6-6 हजार भव हैं । 11 स्थान बताये गए है―(1) वादर पृथ्वी ( 2) सूक्ष्मपृथ्वी (3) वादर जल (4) सूक्ष्भजल (5) वादर तेज (अग्नि) और (6) सूक्ष्म अग्नि । (7) वादर वायु (8) सूक्ष्म वायु (9) वादर साधारण निगोद अथवा साधारण वनस्पति और (10) सूक्ष्म साधारण निगोद और (11) सप्रतिष्ठित वनस्पति । तात्पर्य यह है कि लब्ध्यपर्याप्तक की दृष्टि से यह प्रकरण चल रहा है । केवल निगोद की बात कही जाये तो वह तो सिर्फ साधारण वनस्पति में मिलती है । साधारण निगोद है, पर लब्ध्यपर्याप्तक की दृष्टि से इस वर्णन को करें तो उसकी व्यवस्था इस प्रकार है । केवल साधारण वनस्पति की दृष्टि से भी ऐसी ही व्यवस्था चलती है । क्योंकि उसमें यदि अनंतकाल व्यतीत हो जाने पर सभी को मिलाया जाये और इस तरह अनेक भव बदल जायें तो किस तरह से ये जन्म मरण होते हैं उसका संकेत यहाँ दिया गया है ।