वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 4-30
From जैनकोष
सानत्कुमारमाहेंद्रयो: सप्त ।। 4-30 ।।
तृतीय व चतुर्थ स्वर्ग के उत्कृष्ट आयु―सानत कुमार और माहेंद्र स्वर्गों में कुछ अधिक 7 सागर की उत्कृष्ट स्थिति होती है । इस सूत्र में दो पद हैं । पहले पद में आधारभू स्वर्ग की बात कही है, दूसरे पद में स्थिति की बात कही है । यहाँ अधिक शब्द नहीं कहा गया, किंतु पूर्व सूत्र से अनुवृत्ति लेकर यहाँ अधिक अर्थ हो जाता है यह सानत्कुमार तीसरा कल्प है और माहेंद्र चौथा कल्प है। स्वर्ग तो 16 होते हैं किंतु कल्प 12 होते हैं । कल्प इंद्रों की गणना के अनुसार हैं । 16 स्वर्गों में 12 इंद्र होते हैं और 12 प्रतींद्र होते हैं । तो प्रारंभ के 4 स्वर्ग, 4 कल्प हैं अंत के 4 स्वर्ग 4 कल्प हैं । मध्य के 8 स्वर्गों में दो-दो स्वर्गों में एक-एक कल्प होता है । इस प्रकार तृतीय और चतुर्थ स्वर्ग में आवास करने वाले देवों की स्थिति कुछ अधिक 7 सागर की होती है ।