वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-34
From जैनकोष
न जघन्य गुणानां ।। 5-34 ।।
एक डिग्री चिकनाई व रूक्षत्व गुण वाले परमाणु के बंध का निषेध―जघन्य गुण वाले परमाणुओं का बंध नहीं होता है । यहां जघन्य गुण से केवल एक डिग्री का ग्रहण करना अर्थात, एक डिग्री वाले स्निग्ध अथवा रूक्ष परमाणुओं का बंध नहीं होता । जघन्य शब्द का अर्थ सबसे हल्का छोटा कैसा निकलता है सो शब्द की व्युत्पत्ति से अर्थ देखिये―जघन्यमिव जघन्यं यह निरुक्ति है, याने जो जांघ की तरह हो उसे जघन्य कहते हैं । जैसे कि शरीर के अंगों में सबसे निकृष्ट अंग जंघा है उसी प्रकार किसी भी अन्य पदार्थ के बारे में सबसे निकृष्ट गुण की बात ली जाये तो उसे जघन्य कहते हैं । इस व्युत्पत्ति से एक शिक्षा ग्रहण करना चाहिये कि पुरुष स्त्री के जंघा को कितना निकृष्ट घोषित किया गया है । जैसे किसी पदार्थ को निकृष्ट बताना है, किसी की आयु छोटी हो, गुण खोंटे हों, काम खोटा हो तो लोग कहते हैं कि इसका काम बहुत जघन्य है । इसकी चेष्टा जघन्य है । इसका अर्थ यह है कि इतनी खराब चेष्टा है कि जंघा की तरह, जैसे कि शरीर के अंगों में जाँघ अतीव निकृष्ट है । अथवा दूसरी व्युत्पत्ति देखिये―जघने भव: जघन्य:, जो जंघा में हों उसे जघन्य कहते हैं । जंघा में निकृष्ट चीज क्या होती है जिस पर कामी लोग आसक्त होते है । वह इतना निकृष्ट है कि उसे जघन्य कहते हैं । उससे भी अधिक निकृष्ट कुछ कार्य अन्य नहीं होता । तो ऐसे ही जिन घटनाओं के लिये, जिन वस्तुओं के लिये जघन्य की बात कही जाये तो उसका अर्थ है सबसे छोटा, रद्दी, हीन ।
एक डिग्री स्निग्ध रूक्ष वाले परमाणु का कितनी ही डिग्री गुण वाले परमाणुओं के साथ बंध का अभाव―गुण शब्द के अर्थ अनेक होते हैं । जैसे रूपादिक गुण । तो यहाँ रूप में गुण शब्द का अर्थ चला । वही हिस्सा अर्थ में आता है । जैसे दो गुना, तीन गुना । कहीं उपकार अर्थ में आता है कि यह कोई पुरुष गुणज्ञ है, अर्थात उपकार का जानने वाला है, कृतज्ञ है । कहीं गुण शब्द का प्रयोग द्रव्य में आता है, जैसे यह देश गुणवान है । जिसमें गायें और धान । खूब निष्पन्न हैं । कहीं समता अर्थ में आता है, समान अवयव में आता । इससे दुगुनी रस्सी याने जितनी वह है उतनी अथवा उससे तिगुनी रस्सी । तो उनमें से यहाँ हिस्से के अर्थ में गुण को लेना है अर्थात जघन्य डिग्री का परमाणु बंध योग्य नहीं है । जघन्य गुण हैं जिनके, उन्हें कहते हैं जघन्य गुण । ऐसा परमाणुओं का बंध नहीं है । एक गुण स्निग्ध का, एक गुण स्निग्ध वाले परमाणुओं से बंध नहीं होता । इसी तरह एक गुण की चिकनाई वाले परमाणु का किसी प्रकार की डिग्री वाले, 2-4-6 अनंत डिग्री वाले चिकनाई से युक्त परमाणुओं का भी बंध नहीं होता । इसी प्रकार स्निग्ध का रूक्ष से, रूक्ष का स्निग्ध से, रूक्ष का रूक्ष से अर्थ लगाना याने एक डिग्री वाले चिकने व रूखे परमाणुओं का भी बंध नहीं होता हां उनमें उन्हीं के अगुरुलघुत्व हानि वृद्धि के अनुसार डिग्रियाँ बढ़ जायें तो वहाँ बंध हो सकता है । तो इस सूत्र में जघन्य गुण वाले परमाणुओं के बंध का निषेध किया है । तो क्या जघन्य गुण के स्निग्ध रूक्ष, गुण को छोड़कर अन्य सर्व तरह की डिग्रियों वाले चिकने रूखे परमाणुओं का बंध हो ही जाता है । इस कथन से तो सिद्ध होता कि सबका बंध हो जाना चाहिये । तो इसमें भी जिनका बंध नहीं होता उनका विवरण करने के लिए सूत्र कहते हैं ।