वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-42
From जैनकोष
तद्भाव: परिणाम: ।। 5-42 ।।
समस्त पदार्थों में घटित होने वाला परिणाम अर्थात पर्याय का लक्षण―धर्मादिक द्रव्य जिस स्वरूप से होते हैं वह उनका तद्भाव कहलाता है, और तद्भाव का नाम है परिणाम । परिणाम का स्वरूप पहले उपकार के वर्णन के प्रकरण में कहा गया है । यह परिणाम दो प्रकार का होता है―(1) अनादि, (2) आदिमान । अनादि परिणाम तो धर्मादिक द्रव्यों के हैं । उनके ऐसा नहीं है कि धर्मादिक द्रव्य तो पहले हुये हैं । और गति में उपग्रह करना आदिक उपकार पीछे किया गया हो या पहले गति उपग्रह आदिक होते हो, पीछे धर्मादिक द्रव्यों का अस्तित्त्व बना हो, ऐसा नहीं, किंतु उनका अनादि से संबंध है । अनादि से ही धर्मादिक द्रव्य हैं और अनादि से ही उनमें गति हेतुता है । सो यह तो है सब अनादि परिणाम और आदिमान परिणाम बाह्य कारण पाकर जिसका उत्पाद होता है वह है । जैसे सुख दुःख, जीवन मरण, श्वासोच्छ्वास आदिक आदिमान परिणाम जीव और पुद्गल के ही होते हैं । यद्यपि यह बात मोटे रूप से कही जाती है कि धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार द्रव्यों में अनादि परिणाम हैं, और जीव और पुद्गल में आदिमान परिणाम है । ऐसे विशेष परिणाम को देखकर कहा जाता है, पर यह सिद्धांत नहीं है, क्योंकि सर्व द्रव्यों के द्रव्य पर्यायात्मकपना होने पर ही सत्त्व होता है और सत्त्व अगर उनके उत्पादव्यय रूप न हो तो नित्यपने का अभाव हो जायेगा, तब फिर किस प्रकार से ग्रहण करना परिणाम को ? यों ग्रहण करना कि सभी द्रव्य दुस्स्वरूप हैं? द्रव्य और पर्याय दोनों नयों की विवक्षा से सभी द्रव्यों में अनादि परिणाम और आदिमान परिणाम सिद्ध होता है । जो अनादि से सिद्ध है ऐसे धर्मादिक चार द्रव्यों में भी अनादि परिणाम तो स्पष्ट है, पर चूंकि वह भी उत्पाद व्यय रूप है इस कारण उनमें आदिमान परिणाम आगम से सिद्ध होते हैं । इसी प्रकार जीव और पुद्गल में अर्थ पर्याय की दृष्टि से सब आदिमान परिणाम हैं, पर औपाधिक भावों की दृष्टि से उनके सद्भाव अभाव की दृष्टि से उनमें आदिमान परिणाम होते हैं । तो इस सूत्र में परिणमन का लक्षण बताया है कि द्रव्यों का होना, भाव होना यही परिणाम है । इस प्रकार इस अध्याय में उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक गुण पर्यायमय जीव, पुद्गल, धर्म अधर्म, आकाश और काल का स्वरूप कहा गया है । जैसे कि पहले अध्याय में 7 तत्त्वों का निर्देश किया गया था और उसके आधार पर जीवादिक तत्वों का वर्णन मोक्ष शास्त्र में चलना ही है तो जीव तत्त्व का वर्णन तो चौथे अध्याय तक हुआ और अजीव तत्त्व का वर्णन इस 5वें अध्याय में हुआ । अब आगे छठे अध्याय में आस्रव तत्त्व का वर्णन होगा ।