वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-8
From जैनकोष
मनोज्ञाऽमनोज्ञेंद्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पंच।।7-8।।
(130) परिग्रहविरतिनामक व्रत की पांच भावनायें―इस सूत्र में परिग्रह त्याग व्रत की भावनायें कही गई हैं । 5 इंद्रिय के विषय तो परिग्रह हैं । यदि कोई धन वैभव का संग्रह करता है तो वह इन विषयों के साधनों के प्रयोजन से ही तो करता है । साथ ही मन भी अपने विषयों में लगा रहता है, तो चूंकि विषयों की साधना ही खुद परिग्रह है और विषयसाधना के लिए ही चेतन अचेतन परिग्रह जोड़े जाते हैं, सो परिग्रहत्याग व्रत को ठीक रखने के लिए इंद्रियविषयों का त्याग करना, उनमें रागद्वेष न करना यह आवश्यक हो जाता है । सो जो इंद्रियविषय मनोज्ञ हों, इष्ट हों उनमें राग का त्याग करना और जो इंद्रियविषय अमनोज्ञ हों, इष्ट हो, अनिष्ट हों उनमें द्वेष का त्याग करना ये परिग्रहत्याग की 5 भावनायें हैं । कदाचित् ऐसा इष्ट अनिष्ट विषय न चाहते हुए भी सामने उपस्थित हो जाये और वहाँ इन विषयों की ओर यह चित्त देने लगे तो वह इन विषयों को सुखकारी समझकर उनकी ओर आकर्षित होगा और आकिंचन्यव्रत भंग हो जायेगा । परिग्रहत्याग आकिंचन्यव्रत ही तो है, सो आकिंचन्यव्रत को स्थिर रखने के लिए विषयों में रागद्वेष न करने की भावना बनाये रहना मोक्षार्थी का कर्तव्य है । यहाँ इन 5 व्रतों की दृढ़ता के लिए भावनायें बतायी गई हैं । तो अब इन भावनाओं की पुष्टि के लिए विरुद्ध बातों का क्या फल होता है, यह बताने के सूत्र कहते हैं ।