वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 8-14
From जैनकोष
आदितस्तिसृणामंतरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमाकोटीकोट्य: परा स्थिति: ।।8-14।।
(298) ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय व अंतरायकर्म की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन―प्रारंभ से लेकर आगे तीन तक अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण वेदनीय तथा अंतिम अंतराय इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोड़ा कोड़ी सागर है । इस सूत्र में आदित: शब्द देने से मध्य के या अंत के कर्म न लिए जायेंगे, किंतु प्रारंभ के ही तीन कर्म लिए जायेंगे जैसे कि अष्ट कर्मों के नाम वाले सूत्र में नाम दिए गए हैं । दूसरा पद दिया सूत्र में तिसृणाम् । इस शब्द से यह नियम बनता है कि शुरू के तीन ही लेना, जिनकी कि 30 कोड़ाकोड़ी, सागर उत्कृष्ट स्थिति बतायी जा रही है । उसके बाद पद है अंतरायस्य । इस कर्म का नाम अलग से यों दिया गया है कि इस कर्म की भी उन तीन कर्मों के समान उत्कृष्ट स्थिति है । तो समान स्थिति अंतराय की ही है उन तीन के बराबर इस कारण यहाँ अंतरायस्य शब्द दिया गया है । इस प्रकार पहले कहे गए तीन पदों में यहाँ चार कर्मों को ग्रहण किया गया―ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय । इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोड़ा कोड़ी सागर है । यहाँ कोड़ाकोड़ी शब्द दिया है । कहीं दो कोटि शब्द लिखने से यह अर्थ न लगाना कि करोड़, करोड़ सागर है । वीप्सा अर्थ वाला यहाँ अर्थ न लगाना । यदि करोड़, करोड़ यह अर्थ इष्ट होता तो बहुवचन में प्रयोग न होता, किंतु यहाँ अर्थ है तत्पुरुष समास वाला याने कोड़ाकोड़ी, जिसका भाव है कि एक करोड़ में एक करोड़ का गुणा करने पर जो लब्ध होता है उसे कहते हैं कोड़ाकोड़ी । इस तरह 30 कोड़ाकोड़ी सागर की उत्कृष्ट स्थिति है ।
(299) सागर के काल का उपमाप्रमाण से परिचय―सागर एक बहुत बड़ा प्रमाण है जो गिनती से परे है । इसको उपमा देकर ही समझाया जा सकता है और इसके लिए शास्त्रों में उपमा दी गई है कि दो हजार कोश के लंबे, चौड़े, गहरे गड्ढे में बहुत कोमल बाल जिनको कैंची से इतने छोटे-छोटे खंड करके भर दिए जायें कि जिनका दूसरा हिस्सा किया जाना अशक्य हो, जिससे कि वह गड्ढा खूब ठसाठस भर जाये । अब उस गड्ढे में से 100-100 वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाये । सभी टुकड़े जितने वर्षों में निकल पायें उतने का नाम है व्यवहारपल्य और उससे असंख्यातगुना होता है उद्धारपल्य और उससे भी असंख्यात गुना होता है अद्धापल्य । ऐसे 10 कोडाकोडी अद्धापल्य का सागर होता है । ऐसे 30 कोड़ा-कोड़ी सागर इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति है । यहां आस्था यों रखना कि समय तो अनंत काल बीतेगा । उस अनंतकाल में यह 30 कोड़ाकोड़ी सागर कोई आश्चर्य लायक समय नहीं है, किंतु है गिनती से परे । उस समय का अंदाज करने के लिए यह उपमा प्रमाण से बताया गया है ।
(300) आदि में तीन व अंतिम कर्म की उत्कृष्टस्थिति का इंद्रियजाति की अपेक्षा विवरण―उक्त चार कर्मों की यह 30 कोड़ाकोड़ी सागर स्थिति उत्कृष्ट है, जघन्य नहीं है, ऐसा स्पष्ट कहने के लिए सूत्र में परा शब्द दिया है । सो यह उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों के हुआ करती है । संसार में तो एकेंद्रिय, दोइंद्रिय आदिक अनेक जीव हैं पर उन सबकी उत्कृष्ट स्थिति इतनी नहीं होती । यह उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पंचेंद्रिय जीव को ही है अर्थात् यह जीव ज्ञानावरण, दर्शनावरण वेदनीय और अंतराय इन कर्मों को अधिक से अधिक स्थिति में बाँधे तो इतनी स्थिति तक का कर्म बाँध सकता है । फिर अन्य जीवों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है इन चार कर्मों के विषय की, तो वह आगम से जानना चाहिए । आगम में बताया गया है कि एकेंद्रिय पर्याप्त जीवों के इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागर के 7 भाग किये जा, उनमें से 3 भाग प्रमाण है । दोइंद्रिय पर्याप्तक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 25 सागर प्रमाण काल के 7 भाग किए जायें उनमें तीन भाग प्रमाण है । तीन इंद्रिय पर्याप्तक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 50 सागर प्रमाण काल के 7 भाग में से तीन भाग प्रमाण है । चौइंद्रिय पर्याप्तक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 100 सागर के 7 भाग में से तीन भाग प्रमाण है । जो असंज्ञीपंचेंद्रिय अपर्याप्तक जीव है उसकी उत्कृष्ट स्थिति एक हजार सागर के 7 भागों में से तीन भाग प्रमाण है । और संज्ञीपंचेंद्रिय अपर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति अंत: कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है अर्थात् एक कोड़ाकोड़ी सागर से कम है । एकेंद्रिय अपर्याप्तक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति इसकी पर्याप्ति में जो उत्कृष्ट स्थिति थी उससे पल्य के असंख्यातवें भाग कम है । इस प्रकार दोइंद्रिय, तीनइंद्रिय, चौइंद्रिय, पंचेंद्रिय, अपर्याप्त और संज्ञी अपर्याप्त जीवों की जो उत्कृष्ट स्थिति कही गई है उससे पल्य के संख्यात भाग कम है । इस प्रकार ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बतायी गई है । अब वेदनीय कर्म के बाद जिसका नंबर है ऐसे मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बतायी गई है ।