वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 8-18
From जैनकोष
अषरा द्वादश मूहूर्ता वेदनीयस्य ।।8-18।।
(305) वेदनीयकर्म की जघन्य स्थिति बंध के काल व बंधक का परिचय―वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति 12 मुहूर्त प्रमाण है । आयुकर्म को छोड़कर शेष कर्मों की जघन्य स्थिति का बँधना किसी बड़े आध्यात्मिक श्रमण संत के ही होता है । तो वेदनीय कर्म का यह जघन्य स्थिति बंध सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में होता है । श्रेणी पर समाधि में बढ़े हुए श्रमण जब 10 वें गुणस्थान में पहुंचते हैं तो वहाँ पर तीन कर्मों की जघन्य स्थिति बँध पाती है बाकी तो संसारी जीवों की अधिक-अधिक स्थिति ही बँधती है । वेदनीय कर्म का स्थिति बंध 10 वें गुणस्थान के बाद समाप्त भी हो जायेगा । यद्यपि आस्रव चलेगा जिसे ईर्यापथास्रव कहो अथवा कहो प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध, चलेगा, पर वेदनीय कर्म में स्थितिबंध न बनेगा । इस कारण जो आखिरी ऐसे गुणस्थान हैं कि जिनके बाद में कर्मों की स्थिति बँधेगी वहां ही जघन्य स्थितिबंध संभव है । अब नामकर्म और गोत्रकर्म की जघन्य स्थिति बताते हैं ।