वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-42
From जैनकोष
अवीचारं द्वितीयम् ।। 9-42 ।।
द्वितीय शुक्लध्यान कीं वीचाररहितता की घोषणा―दूसरा शुक्लध्यान परिवर्तनरहित होता है । इससे पूर्व सूत्र में दोनों शुक्लध्यानों की विशेषता कही गई थी । तो सूत्र रचना की पद्धति में इस तरह वर्णन होता व लघुता करने के लिए । अर्थात अधिक न बोलना पड़े । कम से कम शब्द रखने पड़े । इस पद्धति में पहले सबका वर्णन हो जाता है जो एक समान हो, फिर यदि उनमें कोई विशेषता होती है तो अलग से सूत्र कह दिया जाता है । तो इस सूत्र से यह बात स्पष्ट हो गई कि पहला शुक्लध्यान तो वितर्क और वीचार सहित होता है, किंतु दूसरा शुक्लध्यान वितर्क सहित तो होता है पर उसमें परिवर्तन नहीं होता । परिपूर्ण श्रुतज्ञानी प्रथम शुक्लध्यान के बाद किसी एक पदार्थ के एक विषय में ही एकाग्रता से ध्यान में लीन हो जाता है और वह जिस योग में रहते हुए ध्यानस्थ होता है उसी योग में ही रहता है और उसके बाद केवल ज्ञान हो जाता है । इसी प्रकार जिन अंतर्जल्प के शब्दों में ध्यान चलता है उन शब्दों का परिवर्तन नहीं होता और द्वितीय शुक्ल ध्यान हुए बाद केवल ज्ञान हो जाता है । अब वितर्क और वीचार में क्या अंतर है यह बताने के लिए सूत्र कहते हैं ।