वर्णीजी-प्रवचन:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 136
From जैनकोष
श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु ।
स्वगुणा: पूर्वगुणै: सह संतिष्ठंते क्रमविवृद्धा: ।।136।।
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विधान―इस छंद से पहले समाधिमरण का कर्त्तव्य बताया था और उससे पहले व्रती श्रावकों के कर्त्तव्य बताये थे । तो इस प्रसंग में अंत में यह जिज्ञासा हो रही हैकि व्रती श्रावक किस-किस प्रकार के कर्त्तव्य को करता है और उसके कितने दर्जे हैं, जैसे मुनिजन एक ही समान हुआ करते हैं वैसे ही क्या श्रावक भी एक ही समान होते है? यद्यपि मुनियों के आचरण में कमी वेशी के कारण पुलाक वकुस आदिक भेद कर दिए गए हैं लेकिन उन सबका संकल्प प्रतिज्ञा महाव्रत एक ही समान है । तो जैसे मुनियों का महाव्रत एक समान है इसी प्रकार श्रावकों के व्रत भी क्या एक समान हैं? इसही के समाधान में श्रावकों की 11 प्रतिमावों का वर्णन प्रारंभ हो रहा है । इस छंद में बताया है कि अरहंत भगवंत ने श्रावक के स्थान 11 बताए है । वैसे श्रावक के स्थान असंख्यात हैं जिनकी गिनती नहीं परिणामों के भेद से पर उन सब असंख्याते स्थानों को संक्षेप से कहा जाए जो कि व्यवहार में प्रयोजनिक हैं तो वे होते हैं 11 पद और उन पदों में ये पद पूर्व पदों के साथ चलते है और इसी तरह आगे क्रम से बढ़ते हैं अर्थात् किसी के यदि तीसरी प्रतिमा है तीसरा पद है तो पहले दो पद अवश्य होने चाहिएँ । किसी के 11वां पद है तो उसके पूर्व के 10 पद अवश्य होने चाहिएँ । ये 11 प्रतिमाएँ अटपट नहीं होती कि 7वीं प्रतिमा लेवे तो उसे 6 प्रतिमावों से प्रयोजन नहीं । अरे जिसकी 7वीं प्रतिमा है उसकी पूर्व की 6 प्रतिमाएँ तो रहेंगी ही । जैसे मानों किसी की 11वीं प्रतिमा है तो इसका अर्थ हैकि उसकी 1 से लेकर 11 तक प्रतिमाएँ है । वे 11 पद कौन से है? (1) दर्शन, (2) व्रत, (3) सामायिक, (4) प्रोषधोपवास, (5) सचित्त त्याग, (6) रात्रि भोजन त्याग, (7) ब्रह्मचर्य, (8) आरंभ त्याग, (9) परिग्रह त्याग, (10) अनुमति त्याग और (11) उछिष्टाहार त्याग । जो जिस प्रतिमा का धारी है वह उससे पीछे की प्रतिमावों का पालन करता हुआ ही विवक्षित प्रतिमा का पालन करता है, ऐसा न हो सकेगा कि किसी ने 8वीं प्रतिमा ली है तो 8वीं तो पाले और पहले की 7 प्रतिमावों को न पाले । इन प्रतिमावों में पहले 6 प्रतिमावों तक जघन्य श्रावक कहलाता है । 7वीं प्रतिमा से 10वीं प्रतिमा तक मध्यम श्रावक कहलाता है 11वीं प्रतिमा में उत्कृष्ट श्रावक कहलाता है । अब उनमें से प्रथम प्रतिमा का वर्णन करते हैं ।