विपाक
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/8/21/398/3 विशिष्टो नानाविधो वा पाको विपाकः। पूर्वोक्तकषायतीव्रमंदादिभावास्रवविशेषाद्विशिष्टः पाको विपाकः। अथवा द्रव्यक्षेत्रकालभवभावलक्षणनिमित्तभेदजनितवैश्वरूप्यो नानाविधः पाको विपाकः। असावनुभव इत्याख्यायते। = विशिष्ट या नाना प्रकार के पाक का नाम विपाक है। पूर्वोक्त कषायों के तीव्र मंद आदि रूप भावास्रव के भेद से विशिष्ट पाक का होना विपाक है। अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावलक्षण निमित्त-भेद से उत्पन्न हुआ वैश्वरूप नाना प्रकार का पाक विपाक है। इसी को अनुभव कहते हैं। ( राजवार्तिक/8/21/1/583/13 )।
धवला 14/5, 6, 14/10/2 कम्माणमुदओ उदीरणा वा विवागो णाम;......कम्माणमुदय-उदीरणाणमभावो अविवागो णाम। कम्माणमुवसमो खओ वा अविवागो त्ति भणिदं होदि। = कर्मों के उदय व उदीरणा को विपाक कहते हैं। कर्मों के उदय और उदीरणा के अभाव को अविपाक कहते हैं। कर्मों के उपशम और क्षय को अविपाक कहते हैं, यह उक्त कथन का तात्पर्य है।