व्रतावतरणक्रिया
From जैनकोष
(1) गर्भान्वय-त्रेपन क्रियाओं में सोलहवीं क्रिया । यह गुरु की साक्षीपूर्वक बारह अथवा सोलहवें वर्ष में संपन्न की जाती है । इसमें मद्य-मांस और पांच उदुंबर फलों का तथा पंच स्थूल पापों का सार्वकालिक त्याग किया जाता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य गुरु की आज्ञा से वस्त्र, आभूषण और माला आदि ग्रहण कर सकते हैं । क्षत्रिय आजीविका की रक्षा अथवा शोभा के लिए शस्त्र भी धारण कर सकते हैं । जब तक आगे की क्रिया नहीं होती तब तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन तीनों वर्णों के लिए आवश्यक है । महापुराण 38.56, 121-126
(2) दीक्षान्वय क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया । इसमें विद्याभ्यास के पश्चात् शिष्य गुरु के समीप विधिपूर्वक पुन: आभूषण आदि ग्रहण करता है । महापुराण 39.28