शंकित
From जैनकोष
- आहार के 46 दोषों में से एक दोष।
- मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 812 उद्देसिय कीदयंड अण्णादं संकि्दं अभिहडं च। सत्तप्पडिकुट्ठाणि य पडिसिद्धं तं विवज्जेंति ॥812॥ = औद्देशिक, क्रीततर, अज्ञात, शंकित, अन्य स्थान से आया सूत्र के विरुद्ध और सूत्र से निषिद्ध - ऐसे आहर को वे मुनि त्याग देते हैं ॥812॥
- अधिक जानकारी के लिए देखें आहार - 4.1.3-4।