श्रुत तीर्थ
From जैनकोष
धवला 4/1,44/130
चोद्दसपइण्णयाणमंगबज्झाणं च सावणमास-बहुलपक्ख-जुगादिपडिवयपुव्वदिवसे जेण रयणा कदा तेणिंदभूदिभडारओ वड्ढमाणजिणतित्थगंथकत्तारो। उक्तं च-`वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। पडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्मि 40।'
धवला 1/1,1/65
तित्थयरादो सुदपज्जएण गोदमो परिणदो त्ति दव्व-सुदस्स गोदमो कत्ता।
= चौदह अंगबाह्य प्रकीर्णकोंकी श्रावण मासके कृष्ण पक्षमें युगके आदिम प्रतिपदा दिनके पूर्वाह्नमें रचना की गई थी। अतएव इन्द्रभूति भट्टारक वर्द्धमान जिनके तीर्थमें ग्रन्थकर्त्ता हुए। कहा भी है कि `वर्षके प्रथम (श्रावण) मासमें, प्रथम (कृष्ण) पक्षमें अर्थात् श्रावण कृ. प्रतिपदाके दिन सवेरे अभिजित नक्षणमें तीर्थकी उत्पत्ति हुई।। तीर्थसे आगत उपदेशोंको गौतमने श्रुतके रूपमें परिणत किया। इसलिये गौतम गणधर द्रव्य श्रुतके कर्ता हैं।
देखें इतिहास - 4।