श्रेयांस
From जैनकोष
महापुराण/सर्ग/श्लोक
- पूर्व के दसवें भव में धातकीखंड में एक गृहस्थ की पुत्री थी। पुण्य के प्रभाव से नवमें भव में वणिक् सुता निर्नामिका हुई। वहाँ से व्रतों के प्रभाव से आठवें भव में श्रीप्रभ विमान में देवी हुई (8/185-188); (अर्थात् ऋषभदेव के पूर्व के आठवें भव में ललितांगदेव की स्त्री) सातवें भव में श्रीमती (6/60) छठे में भोगभूमि में (8/33) पाँचवें में स्वयंप्रभदेव (9/186) चौथे में केशव नामक राजकुमार (10/186) तीसरे अच्युत स्वर्ग में प्रतींद्र (10/171) दूसरे में धनदेव (11/14) पूर्व भव में अच्युत स्वर्ग में अहमिंद्र हुआ (10/172)। (इनके सर्वभव ऋषभदेव से संबंधित हैं। सर्व भवों के लिए देखें 47/360-362)। वर्तमान भव में राजकुमार थे। भगवान् ऋषभदेव को आहार देकर दानप्रवृत्ति के कर्ता हुए (20/88,128) अंत में भगवान् के समवशरण में दीक्षा ग्रहण कर गणधर पद प्राप्त किया (24/174) तथा मोक्ष प्राप्त किया (47/99)।