समवायिनी क्रिया
From जैनकोष
राजवार्तिक/5/12/7/455/4 क्रिया द्विविधा-कर्तृसमवायिनी कर्मसमवायिनी चेति। तत्र कर्तृ समवायिनी आस्ते गच्छतीति। कर्मसमवायिनी ओदनं पचति, कुशूलं भिनत्तीति।=क्रिया दो प्रकार की होती है—कर्तृ समवायिनी क्रिया और कर्म समवायिनी क्रिया । आस्ते गच्छति आदि क्रियाओं को कर्तृ समवायिनी क्रिया कहते हैं। और ओदन को पकाता है, घड़े को फोड़ता है आदि क्रियाओं को कर्म समवायिनी क्रिया कहते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें क्रिया - 3।