स्त्रीकथा
From जैनकोष
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/67 अतिप्रवृद्धकामै: कामुकजनै: स्त्रीणा संयोगविप्रलंभजनितविविधवचनरचना कर्त्तव्या श्रोतव्या च सैव स्त्रीकथा। राज्ञां युद्धहेतूपन्यासो राजकथाप्रपंच:। चौराणांचौरप्रयोगकथनं चौरकथाविधानम्। अतिप्रवृद्धभोजनप्रीत्या विचित्रमंडकावलीखंडदधिखंडसिताशनपानप्रशंसा भक्तकथा। = जिन्होंके काम अति वृद्धि को प्राप्त हुआ हो ऐसे कामी जनों द्वारा की जानेवाली और सुनी जानेवाली ऐसी जो स्त्रियों की संयोग-वियोगजनित विविधवचन रचना, वही स्त्रीकथा है। राजाओं का युद्धहेतुक कथन राजकथा प्रपंच है। चोरों का चोर-प्रयोग कथन चोरकथा विधान है। अति वृद्धि को प्राप्त भोजन की प्रीति द्वारा मैदा की पूरी और शक्कर, दही-शक्कर, मिसरी इत्यादि अनेकप्रकार के अशन-पान की प्रशंसा भक्तकथा या भोजन कथा है।
अधिक जानकारी के लिये देखें कथा 8।