स्थापित
From जैनकोष
- आहार के छियालीस दोषों में से एक स्थापित दोष - जिस बासन में पकाया था, उससे दूसरे भाजन में पके भोजन को रखकर अपने घर में तथा दूसरे के घर में जाकर उस अन्न को रख दे उसे स्थापित दोष जानना ॥430॥ - देखें आहार - II.4.4।
- वसतिका के छियालीस दोषों में से एक दोष- गृहस्थ ने अपने लिए ही प्रथम बनवाया था परंतु अनंतर ‘यह गृह संयतों के लिए हो’ ऐसा संकल्प जिसमें हुआ है वह गृह स्थापित दोष से दुष्ट है । - देखें वसतिका ।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 427,444 - उद्गम दोष : पागादु भायणाओ अण्णाह्मि य भायणह्मिपक्कविय। सघरे वा परघरे वा णिहिदं ठविदं वियाणाहि ॥430॥
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/443/10- तत्रोद्गमो दोषो निरूप्यते - स्वार्थमेव कृतं संयतार्थमिति स्थापितं ठविदं इत्युच्यते ।