स्वस्थान अप्रमत्त
From जैनकोष
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/45/97/8 स्वस्थानाप्रमत्त: सातिशयप्रमत्तश्चेति द्वौ भेदौ। तत्र स्वस्थानाप्रमत्तसंयतस्वरूपं निरूपयति। =अप्रमत्त संयत के स्वस्थान अप्रमत्त और सातिशय अप्रमत्त ऐसे दो भेद हैं। तहाँ स्वस्थान अप्रमत्तसंयत का स्वरूप कहते हैं। [मूल व उत्तर गुणों से मंडित, व्यक्त व अव्यक्त प्रमाद से रहित, कषायों का अनुपशामक व अक्षपक होते हुए भी ध्यान में लीन अप्रमत्तसंयत स्वस्थान अप्रमत्त कहलाता है -
अधिक जानकारी के लिये देखें संयत - 1.4।