स्वोदय बंधी प्रकृतियाँ
From जैनकोष
पंचसंग्रह/प्राकृत 3/71-73
तित्थयाहारदुअं वेउव्वियछक्कं णिरय देवाऊ। एयारह पयडीओ बज्झंति परस्स उदयाहिं ।71। णाणंतरायदसयं दंसणचउ तेय कम्म णिमिणं च। थिरसुहजुयले य तहा वण्णचउं अगुरु मिच्छत्तं ।72। सत्ताहियवीसाए पयडीणं सोदया दु बंधो त्ति। सपरोदया दु बंधो हवेज्ज वासीदि सेसाणं।
= तीर्थंकर, आहारकद्विक, वैक्रियकषट्क, नरकायु और देवायु-ये ग्यारह पर के उदय में बँधती हैं ।71। ज्ञानावरण की पाँच, अंतराय पाँच, दर्शनावरण की चक्षुदर्शनावरणादि चार, तैजस शरीर, कार्माणशरीर, निर्माण, स्थिरयुगल, शुभयुगल, तथा वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और मिथ्यात्व; इन सत्ताईस प्रकृतियों का स्वोदय से बंध होता है ।72। शेष रही 82 प्रकृतियोंका बंध स्वोदय से भी होता है परोदय से भी होता है ।73। दर्शनावरणीय की पाँच निद्रा 5; वेदनीय 2; चारित्र मोहनीय 25; तिर्यग्मनुष्यायु 2; तिर्यक्मनुष्यगति 2; जाति 5; औदारिक शरीर व अंगोपांग 2; संहनन 6; संस्थान 6; तिर्यक्मनुष्य आनुपूर्वी 2; उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, विहायोगति द्विक 2; बादर-सूक्ष्म 2; पर्याप्त-अपर्याप्त 2; प्रत्येक-साधारण 2; सुभग-दुर्भग 2; सुस्वर-दुःस्वर 2; आदेय-अनादेय 2; यश-अयश 2; ऊँच-नीच गोत्र 2; त्रस-स्थावर 2; = 82 (विशेष देखो उनकी व्युच्छित्ति विषयक सारणियाँ)
अधिक जानकारी के लिये देखें उदय - 7.2।