हेत्वंतर
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र/ मूल व टीका/5/2/6/311
अविशेषोक्ते हेतौ प्रतिषिद्धे विशेषमिच्छतो हेत्वंतरम् ।6। निदर्शनम् एकप्रकृतीदं व्यक्तमिति प्रतिज्ञा कस्माद्धेतोरेकप्रकृतीनां विकाराणां परिमाणाद् मृत्पूर्वकाणां शरावादीनां दृष्टं परिमाणं यावान्प्रकृतेर्व्यूहो भवति तावान्विकार इति दृष्टं च प्रतिविकारं परिमाणम् । अस्ति चेदं परिमाणं प्रतिव्यक्तं तदेकप्रकृतीनां विकाराणां परिमाणात् पश्यामो व्यक्तिमदनेकप्रकृतीति। अस्य व्यभिचारेण प्रत्यवस्थानं नानाप्रकृतीनां च विकाराणां दृष्टं परिमाणमिति।...तदिदमपि शेषोक्ते हेतौ प्रतिषिद्धे विशेषं ब्रुवतो हेत्वंतरं भवति।
विशेषों का लक्ष्य नहीं करके सामान्य रूप से हेतु के कह चुकने पर पुन: प्रतिवादी द्वारा हेतु के प्रतिषेध हो जाने पर विशेष अंश को विवक्षित कर रहे वादी का हेत्वंतर निग्रहस्थान हो जाता है।6। उदाहरण- जैसे व्यक्त एक प्रकृति है यह प्रतिज्ञा है, एक प्रकृति वाले विकारों के परिणाम से यह हेतु है। मिट्टी से बने शराब आदिकों का परिमाण दृष्ट है, जितना प्रकृति का व्यूह होता है उतना ही विकार होता है और यह परिमाण प्रतिव्यक्त है। वह एक प्रकृति वाले विकारों के परिमाण से देखा जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि व्यक्त एक प्रकृति है। ( श्लोकवार्तिक/4/ न्या.191/379/6 में इस पर चर्चा)।