रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 41 - उत्थानिका अर्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
पूर्व में पृथक्-पृथक् श्लोकों के द्वारा सम्यग्दर्शन का जो फल कहा है उसे अब दर्शनाधिकार की समाप्ति के समय संग्रहरूप से उपसंहार करते हुए कहते हैं-